Famous Temples of Kumaon region of Uttarakhand

Famous Temples of Kumaon Region of Uttarakhand

Famous Temples of Kumaon Region of Uttarakhand-जैसा की आप सब जानते है की उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहाँ आपको हर एक मोड़ पर मंदिर मिलेगा। यहाँ लोगों का अपने देवी देवताओं के प्रति बहुत ज्यादा श्रद्धा है। उत्तराखंड में 13 जिले है जिन्हे दो डिवीज़न में बांटा गया है, एक है गढ़वाल मण्डल और एक कुमाऊँ मण्डल। हमारे पौराणिक ग्रंथों में इन्हे केदारखण्ड और मानसखण्ड कहा गया है।

गढ़वाल मण्डल के जो 7 जिले है (हरिद्वार, देहरादून, पौड़ी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, चमोली और उत्तरकाशी ) इस क्षेत्र को केदारखण्ड कहा जाता है और कुमाऊँ मण्डल के 6 जिले (अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चम्पावत, नैनीताल और उधमसिंह नगर) के क्षेत्र को मानसखण्ड कहा जाता है। तो हम आप को इसी मानसखण्ड के मंदिरों के बारे में जानकारी दे रहे है।

जागेश्वर धाम मंदिर

जागेश्वर धाम मंदिर उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में स्थित है और यह हिमालय के निकट अपनी सुंदरता और शांति के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भगवान शिव जी को समर्पित हैं। जागेश्वर मंदिर का निर्माण बहुत ही प्राचीन काल में हुआ था और इसका इतिहास गुप्त साम्राज्य से भी जुड़ा है। माना जाता है कि जागेश्वर धाम मंदिर 9वीं से 13वीं शताब्दी के बीच बना हैं, जिनमें जटिल पत्थर की नक्काशी और स्थापत्य शैली कुमाऊंनी और नागर स्थापत्य परंपराओं की विशेषता है।

यह मंदिर जटागंगा नदी के किनारे स्थित है। जागेश्वर धाम मंदिर में 125 प्राचीन हिंदू मंदिरों का एक समूह है, जो शिव जी और अन्य देवी-देवताओं को समर्पित हैं। यहां का मुख्य मंदिर ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है, जो इस स्थल को और भी महत्वपूर्ण बनाता है। जागेश्वर धाम मंदिर के आस-पास कई प्राकृतिक सुंदर स्थल हैं।

यहां के मंदिर और कुंड धार्मिक और पर्यटन दोनों के बीच लोकप्रिय हैं। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ शांति और पवित्रता का एहसास होता हैं। लोग यहाँ मैडिटेशन (ध्यान) करने आते है। जागेश्वर धाम मंदिर एक ऐतिहासिक धार्मिक स्थल के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य का एक अद्वितीय संगम है। इस मंदिर के बारे में अनेक पुराणों में वर्णन मिलता है।

काटरमल सूर्य मंदिर

काटरमल सूर्य मंदिर, भारत के उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में स्थित एक प्राचीन मंदिर है जो सूर्य भगवान को समर्पित है। यह सूर्य मन्दिर भारतवर्ष का प्राचीनतम सूर्य मन्दिर है। यह मंदिर जिला मुख्यालय अल्मोडा से लगभग 17 किलोमीटर की दूर पर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी राजवंश के तत्कालीन शासक कटारमल के द्वारा नवीं शताब्दी में किया गया। यह सूर्य मंदिर जो की नागर और द्रविड़ की मिश्रण शैलियों में बना है।

इस मंदिर की दीवारों को देवताओं, जानवरों और अन्य पौराणिक प्राणियों की नक्काशी और मूर्तियों से सजाया गया है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि 52 दोलियों वाले एक रेखांकित स्थान पर स्थित है जो अंतरिक्ष में सूर्य के चार योग को प्रतिनिधित करते हैं। यह मंदिर समुद्र सतह से लगभग 2116 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

यह मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया था जिसके खंडित शिखर आज भी इस मंदिर की विशालता और वैभवता का एहसास कराता है। काटरमल सूर्य मंदिर ने समय के साथ अपने मंद मंदिरों की सुंदरता और महत्व को संजोकर रखा है। इस मंदिर की विशेषता और ऐतिहासिक महत्व के कारण यह भारतीय संस्कृति और धार्मिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है। मुख्य मन्दिर के आस-पास 45 छोटे-बड़े अन्य मन्दिर भी है।

कसार देवी मंदिर

कसार देवी मंदिर उत्तराखंड में स्थित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है, जो की अल्मोड़ा के कसार गाँव में स्थित है। यह मंदिर उत्तराखंड के पर्यटन स्थलों में से एक है। यह मंदिर दूसरी शताब्दी का है,जो की कसार देवी को समर्पित है। कसार देवी, देवी दुर्गा की एक स्वरूप हैं। यहाँ का वातावरण बहुत ही सुन्दर और शांतिपूर्ण है।

कहा जाता है कि माँ कसार देवी अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं और उन्हें सुख-शांति प्रदान करती हैं। 1890 के दशक में स्वामी विवेकानन्द जी भी यहाँ आये थे और उन्होंने इस स्थान में आकर ध्यान किया था। स्वामी विवेकानन्द जी ने इस जगह का वर्णन अपनी किताब में भी किया है।

कसार देवी देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी प्रसिद्ध है, यहाँ कई जनि मानी विदेशी हस्तियाँ भी आ चुकी है, जैसे बॉब डायलन, जॉर्ज हैरिसन, कैट स्टीवंस, एलन गिन्सबर्ग और टिमोथी लेरी आदि। इस जगह पर चुम्ब्कीय शक्तियां (magnetic forces) मौजूद है। यह भारत की एक मात्र जगह है जहाँ चुम्ब्कीय शक्तियां है।

गोलू देवता

गोलू देवता उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र के एक प्रसिद्ध देवता है जिन्हें यहाँ के लोग बड़े भक्ति भाव से पूजते हैं। इन्हें वन देवता के रूप में माना जाता है,और उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र के गांवों में इनके कई मंदिर है। गोलू देवता को गौर भैरव यानी ” शिव ” का अवतार माना जाता है, और पूरे क्षेत्र में उनकी पूजा की जाती है।

गोलू द्वेता को न्याय का देवता भी कहा जाता है। लोग बहुत दूर-दूर से यहाँ न्याय पाने के लिए आते है, यहाँ भक्त अपनी परेशानी को एक कागच पे लिख कर गोलू देवता को देते है और इनकी मनोकामना या जो भी न्याय उन्हें चाहिए वो मिल जाता है। क्यूंकि स्थानीय लोगों द्वारा गोलू देवता को सबसे बड़े और त्वरित न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है।

गोलू देवता को उत्तराखंड में कई नामों से जाना जाता है, जिनमें से एक नाम है गौर भैरव। कुमाऊँ में गोलू देवता के चार प्रसिद्ध मंदिर है (अल्मोड़ा, चम्पावत, घोड़ाखाल तथा ताड़ीखेत)।  इनमें से सबसे लोकप्रिय और आस्था का केंद्र अल्मोड़ा जिले में स्थित चितई गोलू देवता का मंदिर है।  

बैजनाथ मंदिर

बैजनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जिले में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। ये जगह अपने प्राचीन मंदिरों के लिए विख्यात है। गोमती नदी के तट पर स्थित यह मंदिर परिसर हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता से घिरा हुआ है, यह मंदिर एक शांत और सुरम्य वातावरण प्रदान करता है। माना जाता है कि यह मंदिर 12वीं शताब्दी में कत्यूरी राजाओं द्वारा बनाया गया था और यह अपनी प्राचीन वास्तुकला और जटिल पत्थर की नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।

बैजनाथ मंदिर में भगवान शिव को वैद्यनाथ के रूप में पूजा जाता हैं,  भगवान् वैद्यनाथ को उपचार और औषधि के देवता के रूप में पूजा जाता है। भक्त अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण के लिए आशीर्वाद मांगने के लिए मंदिर में आते हैं।

अपने धार्मिक महत्व के अलावा भी बैजनाथ मंदिर अपने ऐतिहासिक और स्थापत्य महत्व के कारण एक लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है। मंदिर परिसर में विभिन्न हिंदू देवताओं को समर्पित कई छोटे मंदिर शामिल हैं, जो इसकी आध्यात्मिक आभा और सांस्कृतिक आकर्षण को और भी ज्यादा बढ़ाते हैं।

नैना देवी मंदिर

नैना देवी मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के नैनीताल शहर में स्थित एक प्रतिष्ठित हिंदू मंदिर है। नैनी झील के उत्तरी किनारे पर स्थित नैना देवी मंदिर नैना देवी को समर्पित है, जो देवी पार्वती का अवतार हैं। यह पवित्र मंदिर 64 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।

कहा जाता है कि जब शिव जी माता सती के मृत शरीर को कैलाश पर्वत लेकर जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्‍थापना हुई और इस जगह नैना देवी मंदिर में उनके नेत्र (आँख) गिरे थे, इसलिए इस जगह को नैना देवी कहा जाता है। यहां नैना देवी की नेत्र (आंखों) के रूप में पूजा होती है। श्रद्धालु पुरे साल माँ नैना देवी मंदिर में आते रहते हैं, और माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और इसके ऊंचे स्थान से नैनीताल शहर और आसपास के पहाड़ों के मनमोहक दृश्यों को देखते हैं।

पाताल भुवनेश्वर मंदिर

पाताल भुवनेश्वर मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में स्थित मंदिर है। पाताल भुवनेश्वर मंदिर भक्तों के बीच बहुत आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व रखता है। यह मंदिर चूना पत्थर की एक प्राकृतिक गुफा है, जो हिमालय पर्वतमाला जितना ही पुराना माना जाता है। पाताल भुवनेश्‍वर नाम का अनुवाद “भगवान भुवनेश्‍वर का भूमिगत निवास” है, जो भगवान शिव का संदर्भ देता है।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस गुफा की खोज सूर्य वंश के राजा ऋतुपर्ण ने की थी और इसके अस्तित्व का उल्लेख स्कंद पुराण में भी किया गया है। स्कंदपुराण में कहा गया है की पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर में भगवान शिव रहते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में सभी देवी देवता भगवान शिव की पूजा करने आते हैं। गुफा परिसर में विभिन्न प्राकृतिक चट्टान संरचनाएं, स्टैलेक्टाइट्स और स्टैलेग्माइट्स हैं, जो इसके रहस्यमय आकर्षण को बढ़ाते हैं। भक्तों का मानना है कि इस गुफा की गहराई की खोज करना और इसकी संरचनाओं को देखना आध्यात्मिक रूप से समृद्ध है।

कैंची धाम

कैंची धाम भारत के उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र में नैनीताल शहर के पास स्थित एक आध्यात्मिक स्थल है। कैंची धाम में आश्रम की स्थापना 1960 के दशक में नीम करोली बाबा के भक्तों द्वारा की गई थी, जो प्रेम, करुणा और निस्वार्थ सेवा की उनकी शिक्षाओं से आकर्षित थे।

दुनिया भर से भक्त और आध्यात्मिक साधक नीम करोली बाबा को श्रद्धांजलि देने और आश्रम के आध्यात्मिक वातावरण देखने लिए कैंची धाम आते हैं। हरी-भरी हरियाली और ऊंची-ऊंची पहाड़ियों के बीच बसा शांत वातावरण ध्यान, प्रार्थना और आत्मनिरीक्षण के लिए एक आदर्श वातावरण प्रदान करता है।

कैंची धाम आश्रम नीम करोली बाबा को समर्पित है जिन्हें भगवन हनुमान जी का अवतार माना जाता है, यह आश्रम हज़ारो भक्तों का आस्था का केंद्र है, जहां भक्त प्रार्थना करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं। कैंची धाम पश्चिमी साधकों के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय है, जो नीम करोली बाबा की शिक्षाओं और चमत्कारों के वृत्तांतों से प्रेरित थे।

बागनाथ मंदिर

बागनाथ मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के बागेश्वर ज़िले में स्थित है जो एक प्राचीन शिव मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में किया गया ।   इसी बागनाथ मंदिर के नाम से ही यहाँ बागेश्वर जिले का नाम पड़ा। यह उत्तर भारत में एकमात्र प्राचीन शिव मंदिर है जो दक्षिण मुखी है। यहाँ शिव पार्वती एक साथ स्वयंभू रूप में जलहरी के मध्य विद्यमान हैं।

यह मंदिर सरयू नदी और गोमती नदी के संगम पर बागेश्वर में स्थित है। बागनाथ मंदिर में महाशिवरात्रि के दिन भक्तों की बहुत ज्यादा भीड़ होती है। यह मंदिर उत्तराखंड की प्राचीनतम मंदिरों में से एक है और प्राचीन धार्मिक विरासत का हिस्सा है। पौराणिक कहानियों  के अनुसार ऋषि मार्कडेय यहाँ भगवन शिव जी की पूजा किया करते थे, ऋषी मार्कडेय की पूजा से  खुश होकर भगवन शिव जी यहाँ एक बाघ के रूप में उनको आशीर्वाद देने आये थे।

हाट कालिका मंदिर

हाट कालिका मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ ज़िले के गंगोलीहाट में स्थित है। यह मंदिर देवी काली को समर्पित है। देवी काली इस क्षेत्र की लोकप्रिय देवी है। ऐसा कहा  जाता है कि देवी काली अपने निवास स्थान पश्चिम बंगाल से यहाँ गंगोलीहाट आ गई थी। हाट कालिका माता भारतीय सेना की कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्‍य देवी हैं।

बहुत समय पहले की बात है, कुमाऊँ रेजिमेंट की एक यूनिट समुद्री मार्ग से कहीं जा रही थी, अचानक समुद्र में समुद्री तूफान आने से जहाज डूबने लगा तो जहाज में सवार कुमाऊं रेजिमेंट के एक जवान ने हाट कलिका माँ को पुकारा और उसके बाद जहाज समुद्र किनारे सकुशल पहुंच गया। तब से हाट कलिका माँ कुमाऊँ रेजिमेंट की आराध्य देवी बन गयी। स्कंद पुराण के मानस खंड के अनुसार इस क्षेत्र में सुम्या नामक दैत्य का आतंक था, उसने देवताओं को भी परास्त कर दिया था। 

सुम्या दैत्य के आतंक से परेशान देवताओं ने शैल पर्वत पर आकर इस दैत्य से मुक्ति पाने हेतु देवी की स्तुति की,देवताओं की भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने महाकाली का रूप धारण किया और फिर इस क्षत्र को सुम्या दैत्य के आतंक से मुक्ति दिलाई। अगर यहाँ भक्त जन सच्चे मन से मां की आराधना करते है, तो उनकी हर मनोकामना पूरी होती है।  नवरात्रि में यहां भक्तों की बहुत ज्यादा भीड़ होती है, दूर-दूर से लोग यहाँ माता के दर्शन करने व उनका आशीर्वाद प्राप्त करने आते है।

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