Mahasu Devta

Mahasu Devta

Mahasu Devta-महासू देवता को आमतौर पर भगवन शिव का रूप माना जाता है। महासू देवता कोई एक देवता नहीं बल्कि चार भाई है, बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू (बौठा महासू), चलदा महासू। इन चारों देवताओं को भगवन शिव का रूप माना जाता है। महासू देवता को महासू महाराज भी कहा जाता है। महासू देवता उत्तराखंड के जौनसार बाबर, रवाईं क्षेत्र और हिमाचल के सिमौर, शिमला क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित देवता हैं। महासू देवता को न्याय के देवता कहा जाता है। यह माना जाता है कि महासू देवता सभी विवादों का न्यायपूर्ण और निष्पक्ष निर्णय करते हैं।

महासू देवता(Mahasu Devta)का मुख्य मंदिर जौनसार बाबर के हनोल में टोंस नदी के किनारे स्थित है। मान्यता है की हनोल महासू परिवार का सयुंक्त स्थान है, इसलिए क्षेत्र की जनता द्वारा समय समय पर हनोल को उत्तराखंड का पांचवां धाम घोषित किये जाने की बात उठती रहती है। हनोल मुख्यता बूठिया महासू (बौठा महासू) का मंदिर है। हनोल के अलावा जौनसार बाबर और रवाईं में महासू देवता के कई मंदिर है। महासू देवता की पूजा का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी है।

महासू देवता(Mahasu Devta) की कथा और महिमा यहाँ के लोकगीतों और लोक कथाओं में भी सुनाई देती है। महासू देवता इस क्षेत्र की संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। हर साल ‘महासू जतर’ नामक एक महत्वपूर्ण मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें हजारों भक्त आते हैं। इस मेले में पारंपरिक लोकनृत्य, संगीत, और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जिससे स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा मिलता है। हर साल राष्ट्रपति भवन से महासू महाराज जी के मंदिर नमक भेंट के रूप में आता है।

महासू देवता(Mahasu Devta) की उत्पति कैसे हुई ?

कहा जाता है की एक बार हवन के दौरान सूर्य देव,अग्नि देव और कार्तिके गणेश भगवन को पूजा में शामिल करने से माना कर देते है। ऐसे में तना-तनी बढ़ते देख भगवन शिव सब को आदेश देते हैं की जो सबसे पहले चार धामों के दर्शन करके वापस आएगा उसको पूजा में बैठने का सबसे पहले अधिकार मिलेगा। तब सभी चार धामों की यात्रा में निकल गए वहीँ भगवन गणेश अपने माता पिता शिव पार्वती के चरणों में ही बैठ गए। उन्होंने कहा माता पिता के चरणों में ही चार धाम है।

सारे देवता उनके इस बात से प्रश्न हुए और कार्तिके गुस्सा हो जाते है और वो कहते है की माँ पार्वती ने ही गणेश को ये सुझाव दिया है क्यूंकि वो मुझ से ज्यादा गणेश को प्यार करती है। तब शिव जी ने कार्तिके को कहा तुम्हारा यह शरीर माता की ही देन है। यह सुनकर कार्तिके गुस्से में अपने शरीर से मांस काट कर चार हिस्सों में रख देते है , तब शिव भगवन इन टुकड़ों को समुन्द्र में फेंक देते है।

समुन्द्र में फेंकने के बाद इन शरीर के टुकड़ों को चार नाग खाजाते हैं और इन चार नागों के पेट से चार राजकुमार नागो के रूप में पैदा होते है। कहा जाता है की यही चार महासू कहलाये गए। इसीलिए महासू देवता(Mahasu Devta)को नाग देवता के रूप में भी पूजा जाता है।

महासू देवता(Mahasu Devta) की उत्तराखंड पहुँचने की कथा।

प्राचीन काल में मेंद्रथ नामक जगह पर एक तालाब हुआ करता था। उसमें एक राक्षस रहता था जिसका नाम था किरमीर। उसका इस क्षेत्र पर बहुत आतंक था। वह लोगो को परेशान करता था और खा जाता था, तो गांव वालो ने उसके साथ एक समझौता किया की हर महीने हम गांव से एक व्यक्ति तुम्हारे पास भेजेंगे तुम हम पे आक्रमण मत करो। उसी गांव में एक ब्राह्मण थे हुणाभाट जो अपनी पत्नी के साथ वहां रहते थे।

समझौते के तहत उनके 6 पुत्र भी राक्षस के भेंट चढ़ गए थे और 1 अंतिम पुत्र बचा था, वह नहीं चाहते थे की उनका अंतिम पुत्र की भी बलि चढ़ जाये। एक दिन हुणाभाट की पत्नी कलावती उसी तालाब में पानी भरने गई, जैसे ही कलावती ने अपना घड़ा पानी में डाला वैसे ही घड़े से महासू महाराज के वीर सेड़कुडिया की आवाज़ आई फिर कलावती ने अपना सारा दुःख उन्हें सुनाया तब सेड़कुड़िया ने उनको बताया की आप अपने पति को कश्मीर भेजिए और वहां से महासू महाराज को बुलाई ये।

तब हुणाभाट जी कश्मीर गए और वहां महासू महाराज जी को राक्षस के आतंक के बारे में बताया और उनसे गुहार लगाई की महाराज हमारे क्षेत्र में चलिए हम आप को वहां राज करने का मौका देंगे,महासू महाराज जी हुणाभाट जी को हाँ बोलते हैं और उनको कुछ फूल और चांवल देते हैं और उनको समय और स्थान बता कर कहते हैं खेत में हल लगाना हम वहां प्रकट हो जायेंगे। कश्मीर से वापस आने के बाद हुणाभाट जी ने बताये हुए समय से पहले ही हल लगा दिया।

जैसे ही उन्होंने हल लगाना शुरू किया तो पहले निकले “बासिक महाराज” जो की सबसे बड़े हैं, तो वह हल उनकी आँख पे लग गया, तो मान्यता है की बासिक महाराज को दिखता नहीं है। दूसरे निकले “बौठा महाराज” हल उनके पैरों में लगा तो वह चल नहीं सकते। तीसरी निकले “पबासिक महाराज” हल इनके कान पर लगता है। और चौथे निकले “चलदा महाराज”, चलदा महाराज सही समय पर प्रकट हुए इसलिए वह सही सलामत निकले।

प्रकट होने के बाद चारों महासू महाराज जी ने किरमीर राक्षस के साथ इस क्षेत्र के सभी राक्षसों का वद किया और लोगों को उनके अत्याचारों से मुक्त कराया और उसके बाद महासू देवता यहीं रह गए। इसके बाद चारों महासू महाराज के लिए क्षेत्र का बंटवारा किया गया, माता देवलाड़ी को मेंद्रथ सौंप दिया जाता है, बाकि बौठा महासू को हनोल,बासिक महासू को बाबर,पबासिक महासू को बंगाण क्षेत्र दिया  जाता है और चौथे महासू है चलदा महासू उनका कोई एक स्थाई स्थान नहीं है वह प्रवास पर रहते है, उनकी डोली क्षेत्र में घूमती रहते है।  

राष्ट्रपति भवन से नमक आने के पीछे की कहानी 

एक बार महासू देवता(Mahasu Devta)का डोरिया (महासू देवता का चिन्ह) भ्रम क्षेत्र में जा रहे थे, बीच में टोंस नदी थी। महासू देवता का डोरिया लेजाने वाला व्यक्ति नदी को रस्सी के सहारे पार कर रहा था। बीच में महाराज का डोरिया टोंस नदी में गिर गया जो बहते हुए यमुना नदी के साथ-साथ दिल्ली पहुँच गया (टोंस यमुना की सहायक नदी है )। वहां यह डोरिया एक मछुआरे को मिला उसने यह राजा को दे दिया।

राजा इस डोरिये का प्रयोग नमक रखने के लिए करने लगा धीरे-धीरे राजा के साथ अनहोनियां होने लगी फिर राजा ने अनहोनियां के बारे में अपने राजपुरोहित से पूछा तो राजपुरोहित ने राजा को बताया की यह सब महासू देवता(Mahasu Devta) के रुष्ट होने के कारण से हो रहा है। तब राजा ने महासू महाराज से क्षमा मांगी और इस दोष निवारण के लिए हर साल राज दरबार से महासू महाराज को नमक भेंट किया जाने लगा तब से लेकर आज भी यह रीत राष्ट्रपति भवन द्वारा निभाई जाती है और हर साल राष्ट्रपति भवन से महासू देवता के मंदिर नमक भेंट किया जाता है।

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