Tarkeshwar Mahadev
Tarkeshwar Mahadev-ताड़केश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। ताड़केश्वर मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णित है। महाकवि कालिदास जी ने रघुवंश महाकाव्य में ताड़केश्वर महादेव मंदिर का वर्णन किया है। ताड़केश्वर मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के कोटद्वार शहर से 67 किलोमीटर और लैंसडाउन पर्यटन स्थल से लगभाग 37 किलोमीटर दूर गुंडलखेत गांव के पास स्थित है। यहाँ से दो नदियां विषगंगा एवं मधुगंगा निकलती है। ताड़केश्वर मंदिर समुद्रतल से 1800 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
यह मंदिर देवदार, बांज, बुरांश और काफल के पेड़ों के घने जंगल से घिरा है। सालभर यहाँ का मौसम सुहाना रहता है और कभी-कभी शर्दियों में यहाँ बर्फ भी पड़ती है। मुख्य मंदिर के सामने देवदार का एक पेड़ है जो त्रिशूल आकार का है। ताड़केश्वर मंदिर के चारों दिशाओं में भी त्रिशूल के आकार के चार पेड़ है। कहा जाता है की ये चारों त्रिशूल आकार के पेड़ मंदिर की रक्षा करते है।
वैसे तो यहाँ पूरे साल भक्त जन ताड़केश्वर महादेव के दर्शन करने के लिए आते है। लेकिन शिवरात्रि के दिन भक्त यहाँ बड़ी संख्या में दर्शन करने के लिए आते है। शिवरात्रि के दिन मंदिर में सांस्कृतिक कार्यक्रम, कीर्तन भजन, और भंडारा होता है। जून के महीने में यहाँ एक मेला भी लगता है।
ताड़केश्वर मंदिर में सरसों का तेल, चमड़े की चीज़े ले जाना वर्जित है। यहाँ प्रसाद के रूप में घर के लिए देवदार की पत्तियां ले जाते है। ताड़केश्वर महादेव यहाँ के आस-पास गांव के इष्ट देवता है। यहाँ जो भी मनोकामना मांगी जाती है वो पूरी होती है। मनोकामना पूरी होने पर भक्त जन मंदिर में घंटी चढ़ाते है। “ताड़केश्वर महादेव” के अलावा दो और मंदिर है “एकेश्वर महादेव” और “मुंडेश्वर महादेव”। इन तीनों मंदिरों को कहा जाता है की ये तीन भाई है। तीनों मंदिर पौड़ी गढ़वाल जनपद में ही आते है।
Tarkeshwar Mahadev Mandir Ki Pauranik Kathayein
पहली पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार ताड़कासुर नमक असुर ने इस स्थान पर भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। उसकी कठोर तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान शिव जी ने उसे अमर होने का वरदान दिया । शिव जी के पुत्र के अलावा ताड़कासुर को कोई और नहीं मार सकता था। वरदान पाने के पश्चात ताड़कासुर ने साधु-संतों और लोगों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया।
ताड़कासुर के अत्याचारों से परेशान हो कर साधु-संत भगवान शिव जी के शरण में गए और उनसे सहायता मांगी। ताड़कासुर का अंत केवल भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ही कर सकते थे। भगवान शिव के आदेश पर कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध कर दिया। लेकिन मरने से पहले ताड़कासुर भगवान शिव जी से क्षमा मांगता है और भगवान शिव उसे क्षमा कर देते हैं। और ताड़कासुर को वरदान देते हैं कि कलयुग में इस स्थान पर मेरी पूजा तुम्हारे नाम से की जाएगी। इसलिए इस स्थान को ताड़कासुर के नाम से यहां भगवान भोलेनाथ को ताड़केश्वर कहते हैं।
दूसरी पौराणिक कथा
ताड़केश्वर मंदिर के पीछे दूसरी पौराणिक कथा भी है कहा जाता है की इस स्थान पर एक साधु रहा करते थे और जो भी आस-पास यहाँ पशु चारा चरने या यहाँ रहा करते थे अगर उनको कोई मारता या परेशान करता था तो उन लोगों को वह साधु ताड़ते यानी दंड देते थे। लोगों का मानना है की वह साधु कोई और नहीं बल्कि भगवन शिव के ही रूप थे। इसी “ताड़” शब्द से इस जगह का नाम ताड़केश्वर पड़ा।
मंदिर से जुड़ी एक और मान्यता
कहा जाता है की ताड़कासुर का वध होने के पश्चात भगवन भोलेनाथ जी इस स्थान पर आकर विश्राम कर रहे थे । लेकिन विश्राम के दौरान भगवान शिव जी पर सूर्य की तेज किरणें पड़ रही थीं। जिससे शिव जी को विश्राम करने में परेशानी हो रही थी तो माता पार्वती से यह देखा नहीं गया और उन्होंने शिव जी को सूर्य की तेज किरणें से बचाने के लिए देवदार के वृक्षों का रूप धारण कर लिया।।
![](https://avtarit.co.in/wp-content/uploads/2023/10/Tadkeshwar-Mahadev.jpg)
Table of Contents
ताड़केश्वर महादेव मंदिर कैसे पहुंचे
ताड़केश्वर महादेव मंदिर सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। अगर आप अपनी गाडी से आ रहे हैं तो आप आराम से यहाँ पहुँच सकते है।
आप यहाँ ट्रैन व हवाईजहाज से भी आ सकते है। ताड़केश्वर मंदिर से सबसे निकटतम रेलवे स्टैशन कोटद्वार है जो की यहाँ से 67 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कोटद्वार से आप प्राइवेट टैक्सी या फिर परिवहन निगम की बस ले सकते है। मंदिर से निकटतम एयरपोर्ट जॉलीग्रांट एयरपोर्ट देहरादून है जो की यहाँ से 177 किलोमीटर दूर है।
![](https://avtarit.co.in/wp-content/uploads/2023/10/Tarkeshwar-Mahadev.jpg)
ताड़केश्वर महादेव मंदिर के आस-पास पर्याटन स्थल
लैंसडाउन
लैंसडाउन ताड़केश्वर मंदिर से 37 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। लैंसडाउन एक छावनी परिषद् है। यहाँ भारतीय सेना की गढ़वाल राइफल रेजिमेंटल सेंटर का मुख्यालय है। लैंसडाउन एक हिल स्टेशन है। यह समुद्रतल से 1780 मी की ऊंचाई पर स्थित है। देश विदेश से लोग लैंसडाउन घूमने आते है। साल भर यहाँ का मौसम सुहाना रहता है।
चिंबो वॉटरफॉल
चिंबो वॉटरफॉल ताड़केश्वर मंदिर से लगभग 56 किलोमीटर दूर है। चिंबो वॉटरफॉल चुण्डाई सतपुली मोटर मार्ग पर स्थित है। यह प्राकृतिक झरना बहुत ही आकर्षक है। वैसे तो झरने में पानी पूरे साल आता ही रहता है लेकिन बर्षात के मौसम में यहाँ की सुंदरता और भी बढ़ जाती है।
कुण्डू
कुण्डू ताड़केश्वर मंदिर से लगभग 6 किलोमीटर पहले चखुल्याखाल में एक जगह है। जो की बांज के पेड़ों से घिरा हुआ घना जंगल है। कुण्डू भैंसो का एक खरक है। बर्षात के मौसम में लोग अपने भैसो को यहाँ छोड़ देते है। यहाँ पे एक ताल भी है। यहाँ आप परिवार के साथ पिकनिक, दोस्तों के साथ कैंपिंग कर सकते हैं। यह जगह प्राकृतिक रूप से बहुत ही खूबसूरत है। लेकिन अभी कुण्डू लोगो से अज्ञात है। यहाँ के बारे में लोगो को काम ही पता है। यहाँ आप चखुल्याखाल से ट्रैकिंग करके पहुँच सकते है।
Also read..
[…] में पांच शैवपीठ है एकेश्वर महादेव, ताड़केश्वर महादेव, बिन्देश्वर महादेव, क्यूंकालेश्वर […]