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Surkanda Devi Mandir | 51 शक्तिपीठ मंदिरों में से एक

Surkanda Devi Mandir

Surkanda Devi Mandir- सुरकंडा देवी का मंदिर उत्तराखंड के टिहरी जिले में धनोल्टी और कानाताल के बीच स्थित है। यह मंदिर माता सती को समर्पित है, जोकि भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर का उल्लेख स्कंदपुराण के केदारखंड में भी मिलता है। यह समुद्र तल से लगभग 2757 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। सुरकंडा देवी का मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह प्रकृति प्रेमियों और ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए भी एक आदर्श गंतव्य है।

यहाँ से हिमालय की चोटियों का दृश्य भी दिखाई देता है। मौसम साफ होने पर यहाँ से केदारनाथ, बद्रीनाथ और गंगोत्री की पहाड़ियाँ भी स्पष्ट दिखाई देती हैं जो इस पवित्र स्थान को और भी अधिक सूंदर बनाती है। माना जाता है की माता का मायका चम्बा के पास स्थित जड़धार गांव में है, जड़धार गांव के लोग ही मंदिर की पूरी व्यवस्था करते है। इस मंदिर में हर साल हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते है और माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

सुरकंडा देवी मंदिर (Mata Surkanda Devi Mandir) से जुडी पौराणिक कथा

माता सती, राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं और उनका विवाह भगवान शिव से हुआ था। दक्ष प्रजापति भगवान शिव को पसंद नहीं करते थे, वह उनका अनादर करते थे । एक बार दक्ष प्रजापति ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया इस यज्ञ में उन्होंने भगवान शिव और माता सती को छोड़ कर बाकि सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया।

सभी देवी देवताओं को यज्ञ में जाते देख माता सती का मन भी यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो उठा और वह भगवान भोलेनाथ से कहने लगी की वह तो हमारा स्वयं का घर है हमें वहां जाने के लिए किसी निमंत्रण की आवश्यकता नहीं है हम बिना निमंत्रण के भी जा सकते है। परन्तु भगवान शिव ने माता सती को वहां जाने से मना किया, क्योंकि वे जानते थे कि वहाँ उनका अनादर होगा, लेकिन माता सती भगवान भोलेशंकर की अनुमति के बिना ही यज्ञ में चली गईं।

वहां उनका स्वागत उनकी माता के अतिरिक्त किसी और ने नहीं किया, जब माता सती यज्ञ में पहुंची और उन्होंने देखा की उनके और भगवान भोलेशंकर को छोड़ कर बाकि सभी देवी देवताओं का स्थान था तब उन्होंने अपने पिता प्रजापति दक्ष से भगवान भोलेशंकर का स्थान न होने का कारण पूछा, तो दक्ष प्रजापति ने सार्वजनिक रूप से भगवान शिव का अपमान किया और उन्हें अपशब्द कहे।

अपने पति का यह अपमान माता सती से सहन नहीं हुआ और उन्होंने वहीं यज्ञ कुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी। जब महादेव को इस घटना का पता लगा तो वह क्रोधित हो गए और उन्होंने रूद्र रूप धारण कर लिया।  रूद्र रूप धारण कर के महादेव माता सती का पार्थिव शरीर ले कर पूरे ब्रह्माण्ड में तांडव करने लगे, जिस से पूरे संसार में प्रलय जैसे स्थित बन गयी। 

तब सभी देवी देवता महादेव को शांत करने के लिए भगवन विष्णु के पास गए और भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के पार्थिव शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिए, माता सती के शरीर के 51 भाग अलग-अलग 51 जगह पर गिरे और वह स्थान शक्ति पीठ कहलाये। देवी सती के सिर वाला भाग सुरकंडा मंदिर के स्थान पर गिरा था इसलिए इस स्थान को सुरकंडा नाम से जाना जाता है तथा इस स्थान का नाम सिर सुरकंडा देवी मंदिर पड़ा, जिसका उल्लेख स्कन्द पुराण के केदारखंड में भी मलता है।

सुरकंडा देवी (Surkanda Devi Mandir) का धार्मिक महत्व

सुरकंडा देवी मंदिर(Surkanda Devi Mandir)भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है, यहाँ माता सती का सिर का भाग गिरा था। सुरकंडा देवी मंदिर का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। नवरात्रि और गंगा दशहरा जैसे प्रमुख त्योहारों के दौरान यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। भक्तजन यहाँ आकर देवी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। यहाँ के स्थानीय लोग सुरकंडा देवी को बहुत मानते है, इस क्षेत्र में माता की बहुत मान्यता है।

सुरकंडा देवी मंदिर(Surkanda Devi Mandir) कैसे पहुंच ?

मंदिर तक पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून और निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट है जोकि यहाँ से लगभग 87 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सुरकंडा देवी मंदिर जाने के लिए कद्दूखाल तक सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। या फिर आप देहरादून या मसूरी से टेक्सी लेकर आ सकते है। कद्दूखाल से सुरकंडा देवी मंदिर(Surkanda Devi Mandir) तक पहुँचने के लिए 2 किमी की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। यह ट्रेक बेहद मनोहारी है और चारों ओर हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है।

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