Lakhamandal Mandir – लाखामंडल मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के देहरादून जिले के जौनसार बावर में स्थित अति प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव जी को समर्पित है जोकि यमुना नदी के पास ही स्थित है। इस मंदिर का इतिहास महाभारत से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने यहां निवास किया था और उन्होंने यहाँ सवा लाख शिवलिंगो का निर्माण किया, जिसका पता आर्कियॉलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने 2007 में लगाया जब यहाँ खुदाई में हज़ारों शिवलिंग, मूर्तियां और मंदिर से जुडी कई अन्य सामग्री प्राप्त हुई।
यहाँ दर्शन करने से भक्तों की मन की इच्छा पूरी होती है और सारे पाप नष्ट होते है। इस मंदिर का मुख्य आकर्षण ग्रेफाइट पत्थर से बना एक शिवलिंग है, जो गीला होने पर चमकता है और अपने परिवेश को प्रतिबिंबित करता है। जब लोग इस शिवलिंग में पानी चढ़ाते हैं तो व्यक्ति को शिवलिंग में अपनी परछाई साफ़ दिखाई देती है। यहाँ हर साल 15 अप्रैल को एक विशाल मेला लगता है, पूरे उत्तराखंड में पहला मेला यहीं लगता है उसके बाद अन्य जगहों पर मेला लगने शुरू होते है।
लाखामंडल मंदिर(Lakhamandal Mandir)की पौराणिक कथा
कहा जाता हैं की लाखामंडल मदिर की खोज एक गाय ने की थी। वह गाय यमुना नदी पार करके इस मंदिर में आती थी और शिवलिंग पर अपने दूध की धार से अभिषेक पूजा करती थी। अभी भी यहाँ मंदिर में कई जगह गौमाता के पैरों के निशान है।कहा जाता है की मंदिर के अंदर जो शिवलिंग है वह सतयुग का है और मंदिर के प्रांगण में एक पत्थर की बड़ी शिला है उसमें माता पार्वती जी के छोटे-छोटे पैरों के निशान है ।
ऐसी मान्यता है की माता पार्वती जी ने शिव भगवन जी को पाने के लिए इस स्थान पर कन्या के रूप में तप किया था। कहा जाता है की इस मंदिर में मृत व्यक्ति भी जीवित हो जाता था, मृत व्यक्ति को यहाँ लाकर पंडित द्वारा उसके मृत शरीर पर गंगा, यमुना के पानी को मंत्रो के साथ छिड़का जाता था और वह व्यक्ति जीवित हो जाता था।
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पांडवों से जुडी लाखामंडल मंदिर(Lakhamandal Mandir)की कथा
कहा जाता है की जब पांडवों को अपना राज पाठ छोड़के वनवास को जाना पड़ा, तो उसी वनवास के उपरांत पांडव इस स्थान पर भी आये थे। वह अपने अज्ञातवास के उपरांत एक साल यहाँ रहे। ऐसी भी मान्यता है की लाक्षागृह की घटना यहीं इसी स्थान पर हुई थी, जब कौरवों ने पांडवों को जिन्दा जलाने का प्रयत्न किया था। यहाँ पांडव गुफा भी है जिसका रास्ता मंदिर के पास से जाता है, जिसे अज्ञातवास के समय पांडवों ने बनाया था। जब दुर्योधन ने पांडवों को जलाने का प्रयास किया था तो पांडव इसी गुफा से बच के भागे थे।
कहा जाता है पांडवों ने इस स्थान पर सवा लाख शिवलिंगों का निर्माण किया था। ऐसा माना जाता है की चार युगों (सतयुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग और कलयुग) के शिवलिंग यहाँ मौजूद है। युधिष्ठिर ने यहाँ एक शिवलिंग की स्थापना की थी जिसका नाम है महामंडलेश्वर पांडव इस शिवलिंग की पूजा किया करते थे। यहाँ शिवलिंग इस मंदिर में सबसे बड़ा है जो यहाँ खुदाई के समय मिला था।
लाखामंडल मंदिर(Lakhamandal Mandir)कैसे पहुंचे ?
लाखामंडल मंदिर देहरादून से लगभग 90 किलोमीटर और मूसरी से लगभग 84 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। भक्तजन यहाँ बस और टैक्सी के माध्यम से पहुँच सकते है। लाखामण्डल से निकटतम हवाईअड्डा देहरादून स्थित जॉली ग्रांट हवाईअड्डा है, जोकि यहाँ से लगभग 114 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है और यहाँ से निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून है जोकि लाखामंडल से 90 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। यहाँ आप किसी भी समय जा सकते है, यहाँ का मौसम बहुत ही सुहावना और यहाँ के प्राकृतिक नज़ारे बहुत ही सुन्दर और मन को शांति प्रदान करने वाले है।
(लाखामंडल मंदिर में चार युगों के चार शिवलिंग)
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