Jwalpa Devi Mandir
Jwalpa Devi Mandir– ज्वाल्पा देवी मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित एक सिद्धपीठ है। यह मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है। ज्वाल्पा देवी मंदिर पश्चिमी नयार नदी के तट पर स्थित है। जोकि दूधातोली श्रृंखला से निकलती है और ज्वाल्पा देवी से होकर गुजरती है। भक्तजन माता के दर्शन करने से पहले इसी नयार नदी में स्नान करते है फिर दर्शन करने जाते है। यहाँ मंदिर में हमेशा एक अखंड ज्योति जलती रहती है।
माता के मंदिर में सच्चे मन से प्रार्थना करने पर भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है। ज्वाल्पा देवी मन्दिर में उपलब्ध पुराने लेखों के अनुसार मंदिर में माँ ज्वाल्पा देवी की मूर्ति आदिगुरू शंकराचार्य जी ने स्थापित की थी। ज्वाल्पा देवी में विवाह भी होते है लोग दूर दूर से यह माता के मंदिर में विवाह करने के लिए आते है। मंदिर के पास ही एक संस्कृत विद्यालय है जहाँ बालकों को संस्कृत,ज्योतिष शास्त्र,पंडिताई के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा भी दी जाती है। यहाँ विद्यालय में छात्रों के रहने के लिए छात्रावास की भी व्यवस्था है। यहाँ मंदिर के पास तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए धर्मशालायें है।
Jwalpa Devi Mandir Ki Katha
ज्वाल्पा देवी मंदिर की पौराणिक कथा
ऐसी मान्यता है की एक बार देत्यराज पुलोमा की पुत्री शचि अपने सखियों के साथ नयार नदी में स्नान कर रही थी तभी उन्हे आसमान में जाता हुआ एक दिव्या पुरुष दिखा। शचि उस पुरुष पर मोहित हो गई और उसके मन में उस पुरुष से विवाह करने की इच्छा जागृत हो गई। शचि ने अपनी सखियों से अपने मन की बात बताई और उस पुरुष के बारे में पता करने को बोला। शचि की सखियाँ उस दिव्या पुरुष के बारे में पता करने लगी और तब शचि की सखियों ने उसे बताया की वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि देवताओं के राजा देवराज इंद्रा है।
और दानवों और देवताओ में हमेशा शत्रुता रही है इसलिए यह विवाह सम्भव नहीं है। उसी क्षण वहाँ से नारद मुनि जा रहे थे। नारद जी ने उनकी सारी बातें सुन ली। शचि की सखियों ने नारद मुनि से उसकी मन की बात बताई तब नारद मुनि जी ने कहा यदि शचि सच्चे मन से माँ पार्वती जी की तपस्या करेगी तो उनके वरदान से यह विवाह संभव हो सकता है। शचि ने नारद जी के बताये गए उपाय को ध्यान में लिया और पश्चिमी नयार नदी के तट पर तपस्या शुरु कर दी। और विषम परिस्थितियों में भी तपस्या करती रही।
अंततः शचि की कठोर तपस्या से माँ पार्वती प्रसन्न हुई और ज्वाला (अग्नी) के रूप में प्रकट हुई। और माता पार्वती ने सच्ची को मनोकामना का वरदान दिया। माता इस स्थान पर ज्वाला यानि अग्नी के रूप में प्रकट हुई थी इसलिए इस स्थान का नाम ज्वाल्पा देवी पड़ा। पुराणों में भी इसके बारे में बताया गया है। स्कंदपुराण अध्याय 168 में शचि की तपस्या और भक्तों की मनोकामना पूर्ण होने के बारे में बताया गया है।
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ज्वाल्पा देवी मंदिर कैसे पहुंचे
ज्वाल्पा देवी मंदिर सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा है। यह मंदिर कोटद्वार पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग 534 के मध्य स्थित है। ज्वाल्पा देवी मंदिर जनपद मुख्यालय पौड़ी से 33 किलोमीटर, कोटद्वार से 73 किलोमीटर और सतपुली से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ज्वाल्पा देवी मंदिर जाने के लिए आप कोटद्वार से टैक्सी,परिवहन निगम या GMOU की बस ले सकते हैं।
मंदिर से नज़दीकी रेलवे स्टेशन कोटद्वार और नज़दीकी एयरपोर्ट देहरादून जॉलीग्रांट एयरपोर्ट है। जोकि ज्वाल्पा देवी से 145 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जॉलीग्रांट एयरपोर्ट से आप सीधा ज्वाल्पा देवी मंदिर के लिए प्राइवेट टैक्सी ले सकते हैं या फिर एयरपोर्ट से कोटद्वार के लिए परिवहन निगम की बस और कोटद्वार से मंदिर के लिए सरकारी या प्राइवेट बस से पहुँच सकते है।
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