Bhairav Garhi Mandir
Bhairav Garhi Mandir – भैंरव गढ़ी मंदिर (Bhairav Garhi Mandir) भगवान शिव के 5वे अवतार भैंरव बाबा को समर्पित है। इस जगह को लंगूर गढ़ी के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित है। भैंरव गढ़ी लैन्सडाउन हिल स्टेशन के पास ही है। यह मंदिर लैन्सडाउन से लगभग 43 मिनट की दूरी पर स्थित है। भैंरव गढ़ी गढ़वाल के 52 गढों में से एक गढ़ है। जब गोरखाओं ने गढ़वाल पर आक्रमण किया तो उन्होंने भैंरव गढ़ी को छोड़ कर बाकि सारे गढ़ जीत लिया थे 52 गढ़ों में से एक मात्र भैंरव गढ़ी ही था जिसे गोरखा कभी जीत नहीं पाए।
समुन्द्र तल से यहाँ की ऊंचाई लगभग 1932 मीटर है। इस मंदिर में कालनाथ भैंरव की पूजा की जाती है। और उनके लिए मंडवे के आटे का प्रसाद बनाया जाता है। स्थानीय भाषा में मंडवे से बने इस प्रसाद को रोट कहते हैं। भैंरव बाबा का यह मंदिर लगभग 100 साल पुराना है। भैंरव गढ़ी मंदिर की सदियों से चली आ रही परम्परा के अनुसार मंदिर के मुख्य पुजारी डोबरियाल जाति के लोग ही होते हैं।
Bhairav Garhi Mandir
Bhairav Garhi Mandir ki Katha
भैंरव गढ़ी मंदिर की पुरानी कथा
कहाँ जाता है की भैंरव बाबा पहले कुमाऊँ में थे लेकिन जब कुमाऊँ पर गोरखाओं ने अपना पूर्ण अधिकार कर लिया तो उन्होंने वहाँ के लोगो पर अत्याचार करना शुरु कर दिया। वहाँ के लोग गोरखाओं के अत्याचार से परेशान होकर गढ़वाल की तरफ आने लगे। जो लोग कुमाऊँ में भैंरव बाबा को पूजते थे वो भी भागकर गढ़वाल आ गए तो उनके साथ ही भैंरव बाबा भी यहाँ गढ़वाल आ गए। गढ़वाल में बाबा ने पहले अलग-अलग जगह पे वास किया फिर वह हनुमान गढ़ी गए जोकि लंगूर गढ़ी से थोड़ी सी ही दूरी पर एक पहाड़ी है और उनकी पूजा वहाँ होने लगी।
फिर अंततः भैंरव बाबा ने भैंरव गढ़ी (लंगूर गढ़ी) में अपना निवास किया। भैंरव गढ़ी में वह एक चीड़ के पेड़ के अंदर अवतरित हुए। पहले यह जगह खाली पहाड़ी थी आस – पास गांव के लोग इस पहाड़ी पर गाय चराने आते थे तो रोज एक गाय इस चीड़ के पेड़ के पास आकर अपना दूध उस पेड़ को देकर चली जाती थी। ऐसे ही दिन बीतते चले गए गाय पेड़ को दूध देकर चली जाती रोज गाय का मालिक स्याम को दूध निकलने जाता तो गाय में दूध ही नहीं होता था।
तो गाय के मालिक ने सोच में इसको छुप – छुप के देखता हूँ। जब वह पीछा करते हुए गया तो उसने देखा की गाय तो अपना दूध रोज चीड़ के पेड़ को दे आती है। तो उसे गुस्सा आया और उसने अपनी कुल्हाड़ी से चीड़ के पेड़ पर वार किया जैसे ही उसने पेड़ पर पहला वार किया तो कुल्हाड़ी की पहली चोट से पेड़ से पानी की धारा निकली तो वह चौंक गया की ये पेड़ से पानी की धारा कैसे निकल रही है।
फिर उसने दूसरी चोट मारी तो पेड़ से दूध की धारा निकलने लगी और तीसरी चोट में खून की धारा। तो वह व्यक्ति सोच में पड़ गया और डर के वहाँ से गांव भाग गया। फिर उसने पूरी घटना के बारे में गांव में लोगो को बताया उसी रात भैंरव बाबा गांव के एक व्यक्ति के सपने में आये और उन्हें बताया की मैं उस जगह एक पेड़ पे वास करता था।
और एक व्यक्ति ने उस पेड़ को हानि पहुंचाई अब उस पहाड़ी की चोटी पर मेरा एक मंदिर बनाया जाये। वहां पे दो गांव हैं राजखिल और दूसरा बखोरी तो दोनों ही गांव वालों ने आपसी सहमति से निर्णय किया की राजखिल गांव के लोग जो डोबरियाल थे वो मंदिर के पुजारी होंगे और बखोरी गांव के लोग जो रावत थे वो मंदिर की सेवा करेंगे।
इस तरह से वहां पे जो वर्तमान मंदिर है वह अस्तित्वा में आया। और उस जगह को भैंरव गढ़ी कहा जाने लग। तब से अब तक मंदिर में उसी विधि विधान से पूजा अर्चना, सेवादारी चली आ रही है। कहा जाता है की चीड़ का जो पेड़ था जिसे काट दिया गया था उसके जड़ आज भी मंदिर में स्थित है और आज भी उससे दूध की धारा निकलती रहती है। मंदिर में भैंरव बाबा के दर्शन उसी पेड़ के जड़ के रूप में होते है। आज भी भैंरव गढ़ी मंदिर के पुजारी डोबरियाल जाति के लोग ही है।
भैंरव गढ़ी मंदिर कैसे पहुंचे
भैंरव गढ़ी मंदिर सड़क के रास्ते पहुंचा जा सकता है। कोटद्वार से गुमखाल होते हुए कीर्तिखाल तक बस, टैक्सी या कार से जा सकते हैं। फिर कीर्तिखाल से मंदिर तक खड़ी चढ़ाई करके जाना पड़ेगा। कीर्तिखाल कोटद्वार से लगभग 39.4 किलोमीटर और लैंसडाउन से 16.2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ से नजदीकी रेलवे स्टेशन कोटद्वार है।
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