Mata Garhdevi-माता गढ़देवी सम्पूर्ण उत्तराखंड में नाथ पंथी देवी देवताओं के साथ अलग-अलग रूप में पूजी जाती है। इन्हें सभी देवी देवता अपनी धर्म बहन मानते है। माना जाता है कि इन्हें गोलू देवता के साथ अन्यारी देवी के रूप में भी पूजा जाता है और कई जगहों पर गाढ़ कि गढ़ देवी के रूप में भी पूजी जाती है। माता गढ़देवी का निवास पहाड़ों के गाड़ गधेरों में माना जाता है, इसलिए इनका नाम गढ़देवी रखा है। माना जाता है कि माता गढ़ देवी माँ काली का अवतार है और इनकी 22 रूपों में पूजा होती है, इन्हें 22 बहने गढ़देवी के नाम से भी जाना जाता है।
माता गढ़देवी (Mata Garhdevi) के अवतार कि कथा
एक समय सिधवा विधवा रमोला द्वारा एक महायज्ञ का आयोजन किया गया। इस महायज्ञ में समस्त लोकों के देवी देवताओं यक्ष गन्धर्व को आमंत्रित किया गया। सभी देवी देवताओं के साथ इस यज्ञ में 22 बहने गढ़देवी भी आई और उनके साथ आछरियां (परियाँ) भी आई। यज्ञ समाप्ति के उपरांत यज्ञ का भाग का वितरण करने कार्य सौंपा गया। भूमिया देवता गोल्जू को उन्होंने सभी में आगवानी बनाया और उसे सभी को भूमि प्रदान करने को बोला।
भूमिया देवता गोल्जू ने 22 बहनों को अलग-अलग स्थान प्रदान किये,किसी को गाड़ गधेरे दिए तो वह गढ़देवी कहलाई तो किसी को डाना (ऊँचे पर्वत) दिए तो वह डाना कि देवी कहलाई। जिस देवी को जो स्थान मिला वह देवी उसी स्थान के नाम से पूजे जाने लगी। गोलू देवता द्वारा भूमि में स्थान देने के बाद माता गढ़देवी गोलू देवता को अपना धर्म भाई मानने लगी और तब से वह भी गोलू देवता के साथ पूजी जाती है। वहीँ कुछ अन्य कथाओं में गढ़देवी को गोलू देवता के साथ अन्यारी देवी के रूप में पूजा जाता है। गढ़देवी गोलू देवता के भाई कलुवा देवता के साथ भी रहती है।
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माता गढ़देवी(Mata Garhdevi)से जुडी दूसरी कथा
सात बहने परियां और उनके साथ पृथ्वी लोक पे आई आठवीं गढ़देवी थी। जब वापस जाने की बारी आई तो परियां अपने लोक में चली गई और गलती से माता गढ़देवी पृथ्वी लोक में रह गई। गढ़देवी ने अपनी शक्तियों से लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया तब वहां के राजा भृगमल ने एक गड्ढा खोद कर गढ़देवी को वहां दबा दिया और मंत्रे हुए पत्थरों से गड्ढा बंद करके गढ़देवी को मृत्यु लोक से नागलोक भेज दिया।
12 महीने वहां रहने के बाद गढ़देवी का मन वहां भी नहीं लगा और वह परेशान रहने लगी। इस संदर्भ में जब गढ़देवी का जागर लगता है तो एक पंक्ति आती है ( बार मास राई तू बेतालों दगड़ी )। जब गढ़देवी नागलोक में परेशान थी तो वह दादू दादू यानि (बड़ा भाई ) करके बिलाप करने लगी। उस समय पृथ्वी लोक पर गुरु गोरखनाथ जी का अवतार था।
गुरु गोरखनाथ जी अपनी सिद्धियों द्वारा माता गढ़देवी की करुणा की पुकार सुन ली और गुरु गोरखनाथ जी ने कहा में तुम्हे इस नागलोक से तब ही बाहर निकलूंगा जब तुम मुझे वचन दो गी की तुम मृत्युलोक में किसी को भी बिना वजह परेशान नहीं करोगी और जैसा मैं कहूंगा वैसा ही करोगी।
तब माता गढ़देवी (Mata Garhdevi) ने गुरु गोरखनाथ जी की सभी बातों को माना और उन्हें वचन दिया की वह किसी को परेशान नहीं करेगी और तब गुरु गोरखनाथ जी ने माता गढ़देवी को नागलोक से बाहर निकला। कहा जाता है की तब से माता गढ़देवी ने गुरु गोरखनाथ जी को अपना भाई बना लिया और इस प्रकार गढ़देवी सभी नाथ पंथी देवी देवताओं की बहन कहलाने लगी। नागलोक से बाहर निकलने के बाद माता गढ़देवी को आध्यात्मिक और तांत्रिक शिक्षा का ज्ञान गुरु गोरखनाथ जी ने दी।
सभी तंत्र विद्या सीखकर गुरु गोरखनाथ जी ने गढ़देवी को 12 वर्षों तक अपनी झोली में रखा, लेकिन उनका मन वहां भी नहीं लगा और उन्होंने गुरु गोरखनाथ जी से आग्रह किया हे ! गुरु मुझे आप की झूली में नहीं रहना है मुझे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड देखना है। तब गुरु गोरखनाथ जी उन्हें बंगाल ले गए और वहां उनको अन्य गुरु से मिलवाया । वह गुरु माता गढ़देवी का श्रृंगार करके देवी रूप प्रदान करके गाढ़ (छोटी नदी) रहने को देते है, तब से वह गाढ़ की गढ़देवी कहलाने लगी।
माता गढ़देवी (Mata Garhdevi) की पूजा पद्धति
माता गढ़देवी (Mata Garhdevi) माँ दुर्गा का स्थानीय रूप है, इनकी पूजा मध्य रात्रि में होती है। सम्पूर्ण कुमाऊँ और गढ़वाल के कुछ स्थानों में गढ़देवी पूजी जाती है। इनकी पूजा गांव की सीमाओं से बाहर होता है क्यूंकि इनका निवास ही गाढ़ (नदियों के पास) होता है। इनकी पूजा का भोग (प्रसाद) भी वहीँ गाढ़ में दिया जाता है। माता के साथ परियां भी चलती है, माता क्रोधित होने के साथ-साथ बड़ी दयानिधि भी है। माता गढ़देवी का रूप ममतामय और करुणामय है, अगर भक्त जान बड़ी श्रद्धा और सच्ची भावना से माता की पूजा अर्चना करता है तो माता उसकी मनोकामना जरूर पूरा करती है।
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