Kumbh – कुंभ भारत का धार्मिक,सांस्कृतिक और पौराणिक मेला है, जो भारत के चार अलग-अलग स्थानों ( हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक ) में आयोजित होता है। कुम्भ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है जिसमें करोड़ों लोग पवित्र नदियों में डुबकी लगाते हैं और अपने पापों से मुक्ति पते हैं। कुंभ मेला का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व है, जिसका उल्लेख हमारे पौराणिक धार्मिक ग्रंथों, कथाओं और पुराणों में मिलता है।
कुंभ(Kumbh) का आयोजन हिंदू पंचांग के अनुसार ग्रह-नक्षत्रों के विशेष संयोग पर आधारित होता है,जिसमें सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की स्थिति महत्वपूर्ण होती है। कुंभ में स्नान करने के लिए देश विदेश से करोड़ों की संख्या में लोग यहाँ पहुँचते हैं। यहाँ विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत शाही स्नान के दिन स्नान करते हैं। कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, यह न केवल धार्मिक आस्था, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत को भी संजोए हुए है।
कुंभ(Kumbh) मेला से जुड़ी पौराणिक कथा
हमारी पौराणिक कथाओं और पुराणों के अनुसार एक समय अज्ञानता में इंद्रदेव ने महर्षि दुर्वासा का अपमान कर दिया, जिससे क्रोधित होकर महर्षि दुर्वासा ने समस्त देवताओं को श्राप दे दिया। महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण देवताओं की शक्ति कमजोर हो गई, तब असुरों ने देवताओं को बहुत परेशान किया और स्वर्ग पर अधिकार कर लिया, असुरों से परेशान होकर देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। तब विष्णु भगवान ने देवताओं को असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने को कहा। समुद्र मंथन के लिए देवताओं और असुरों ने मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकि नाग को रस्सी के रूप में उपयोग किया था।
समुद्र मंथन
समुद्र मंथन का उल्लेख पौराणिक ग्रंथो, धार्मिक पुस्तकों,महाभारत और विष्णु पुराण में मिलता है। यह मंथन देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्त करने के लिए हुआ था। भगवन विष्णु जी कहने पर देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन शुरु कर दिया, लेकिन समुद्र मंथन के दौरान मंदराचल पर्वत डूबने लगा, तब भगवान विष्णु जी ने कछुए का रूप धारण कर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर उठा लिया।
जब समुद्र मंथन से अमृत कलश निकला, तो अमृत पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच युद्ध छिड़ गया। असुरों से अमृत कलश को बचाने के लिए इंद्रदेव के बेटे जयंत अमृत कलश को लेकर भागने लगे तभी अमृत कलश से अमृत की चार बूंदें धरती के चार स्थानों (प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक) पर गिर गई। इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ (Kumbh) मेला का आयोजन होता है। समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से 14 रत्न निकले थे।
समुद्र मंथन से प्रकट 14 रत्न
- हलाहल विष – मंथन से सबसे पहले हलाहल विष निकला ( हलाहल विष को कालकूट विष भी कहा जाता है)। यह विष बहुत ही खतरनाक था इससे संपूर्ण सृष्टि नष्ट हो सकती थी। तब ब्रह्मदेव ने महादेव से आह्वान किया और महादेव ने हलाहल विष पी लिया, विष पीने के बाद महादेव का कंठ नीला पड़ गया और तब से वह नीलकंठ कहलाए।
- कामधेनु गाय – कामधेनु गाय श्वेत रंग की और एक दिव्य गाय थी, कहा जाता है की कामधेनु गाय लोगों की इच्छाएँ पूर्ण करती थी।
- उच्चैःश्रवा घोडा – उच्चैःश्रवा घोडा सात मुखों वाला दिव्य घोड़ा था,जो उड़ सकता था। यह सफ़ेद रंग का था।
- ऐरावत हाथी – यह देवों के राजा इंद्र की सवारी है। ऐरावत हाथी श्वेत रंग का दिव्य हाथी है,जिसे हाथियों का राजा भी कहा जाता है।
- कौस्तुभ मणि – यह समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त किया गया बहुमूल्य रत्न है जिसे भगवान विष्णु जी ने धारण किया है।
- कल्पवृक्ष – कल्पवृक्ष एक दिव्या वृक्ष है। ऐसा कहा जाता है की यह वृक्ष सभी की इच्छाएं पूर्ण करता है l
- रंभा अप्सरा – समुद्र मंथन से रंभा अप्सरा भी निकली थी, जो बहुत ही सुंदर थी।
- माता लक्ष्मी – समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी प्रकट हुईं। असुर और देवता दोनों देवी लक्ष्मी को चाहते थे कि उनके पास आ जाए, लेकिन माता लक्ष्मी स्वयं ही भगवान विष्णु जी के पास चली गई।
- वारुणी मदिरा – वारुणी मदिरा यह एक मदिरा थी ,जो समुद्र मंथन के उत्पन हुई थी। भगवन विष्णु जी ने यह मदिरा असुरों को दे दिया था।
- चंद्रमा – चंद्रमा भी समुद्र मंथन से प्रकट हुए हैं, इन्हें भगवान शिव जी ने अपने जटाओं पर धारण कर लिया था।
- पारिजात वृक्ष – समुद्र मंथन से उत्पन पारिजात वृक्ष एक चमत्कारी वृक्ष था। इस वृक्ष को छूने मात्र से ही थकावट मिट जाती थीl
- पांचजन्य शंख – मंथन से प्रकट यह शंख भगवान विष्णु जी ने अपने पास रख लिया।
- भगवान धन्वंतरि एवं अमृत – 13वें रत्न भगवान धन्वंतरि अपने हाथ में 14वें रत्न अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। इसी अमृत कलश को पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ था।
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कुंभ(Kumbh) के प्रकार और अवधी
कुंभ(Kumbh) तीन प्रकार का होता है (अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ)। सभी की अपनी एक विशेषता है, यह तीनों कुंभ अलग-अलग अवधी पर अलग-अलग स्थानों पर आयोजित किये जाते है।
- अर्धकुंभ :- यह 6 साल में लगता है। अर्धकुंभ केवल दो स्थानों पर लगता है, हरिद्वार और प्रयागराज।
- पूर्णकुंभ :- पूर्णकुंभ हर 12 साल में एक बार लगता है, जिसका आयोजन भारत के चार अलग अलग स्थानों पर होता है (उज्जैन, नासिक, हरिद्वार और प्रयागराज)
- महाकुंभ :- महाकुंभ जो 144 साल बाद आता है यह केवल प्रयागराज में ही लगता है। प्रयागराज को तीर्थों का राजा भी कहा जाता हैं।
कुंभ (Kumbh)के आयोजन स्थल
कुंभ(Kumbh)मेला भारत के चार स्थानों पर आयोजित किया जाता है, जहाँ अमृत की बूंदे गिरी थी। इस मेले में करोड़ों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करने और अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए आते हैं ।
- प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) – यहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम पर लगता है, जिसे (त्रिवेणी संगम ) भी कहते हैं। प्रयागराज में तीन कुंभ (अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ ) लगते हैं। अर्धकुंभ 6 साल के अंतराल पे , पूर्णकुंभ 12 साल में और महाकुंभ 144 साल बाद लगता है।
- हरिद्वार (उत्तराखंड) – हरिद्वार में कुंभ गंगा नदी के तट पर लगता है। यहाँ दो प्रकार के कुंभ लगते हैं, अर्धकुंभ और पूर्णकुंभ। अर्धकुंभ 6 साल में और पूर्णकुंभ 12 साल में लगता है।
- नासिक (महाराष्ट्र) – यह कुंभ(Kumbh)महारष्ट्र के नासिक में 12 साल में एक बार गोदावरी नदी के तट पर लगता है। नासिक कुंभ को सिंहस्थ कुंभ भी कहा जाता है।
- उज्जैन (मध्य प्रदेश) – उज्जैन में पूर्णकुंभ लगता है, जो हर 12 साल में लगता है। उज्जैन कुंभ का आयोजन क्षिप्रा नदी के तट पर होता है। उज्जैन कुंभ को भी सिंहस्थ कुंभ कहा जाता है।
महाकुंभ
महाकुंभ का आयोजन 144 वर्षों में एक बार होता है, जब पूर्ण कुंभ(जोकि हर 12 साल में एक बार लगता है) के 12 चक्र पूर्ण होते हैं ,तो महाकुंभ लगता है। यह महाकुंभ केवल और केवल प्रयागराज में ही आयोजित किया जाता है। प्रयागराज जिसे तीर्थों का राजा कहा जाता है। प्रयागराज में हिन्दुओं की तीन सबसे पवित्र नदियां (गंगा, यमुना और सरस्वती ) का संगम होता है और इसी संगम को त्रिवेणी भी कहा जाता है।
यहाँ एक भव्य और दिव्या महाकुंभ का आयोजन होता है, महाकुंभ सभी कुम्भों में सबसे महत्वपूर्ण कुंभ है,क्यूंकि यह 144 वर्षों बाद लगता है। अभी प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ का पर्व चल रहा है जोकि 26 फरवरी तक चलेगा, जिसमें लगभाग 40 से 45 करोड़ लोगों का स्नान करने का अनुमान है।
अमृत स्नान
अमृत स्नान कुंभ(Kumbh)मेले का महत्वपूर्ण स्नान है। यह स्नान विशेष तिथियों में जैसे (मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी) आदि दिनों में किया जाता है। अमृत स्नान में सबसे पहले अखाड़ों के साधु-संत स्नान करते हैं। इस स्नान के दौरान अखाड़ों के साधु-संत भव्य जुलूस झांकियां और पेशवाई निकलते हैं और स्नान के लिए जाते हैं। अखाड़ों के इस पेशवाई को देखने के लिए लोग बड़ी संख्या में कुंभ में आते है। अमृत स्नान के दिन आम श्रद्धालु साधु-संतों के स्नान के बाद ही स्नान करते हैं।
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