Holi Kyo Manayi Jati Hai
Holi Kyo Manayi Jati Hai-होली रंगों, हर्ष, उल्लास, और एकता की भावना से भरा हुआ महत्वपूर्ण त्यौहार है। होली का त्यौहार फाल्गुन महीने की पूर्णिमा के दिन पूरे देश में मनाया जाता है। इस दिन लोग एक दूसरे पे तरह-तरह के रंग लगते है,पानी से भरे गुब्बारे एक दूसरे पर फेंकते है और नाच गानों के साथ होली के त्यौहार का उत्सव मनाते है। इस दिन लोग अपने घरों में तरह-तरह के पकवान,मिठाइयाँ बनाते है और एक दूसरे के घरों में जाकर बाँटते हैं।
होली की प्रमुख मिठाई गुजिया है। होली का त्यौहार आपस में सामाजिक सद्भाव और एकता को बढ़ावा देता है। होली के मुख्य त्यौहार से एक दिन पहले होलिका दहन होता है, जिसे (होलिका दहन) के रूप में जाना जाता है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, जो लोगों को नकारात्मकता को खत्म करने और सकारात्मकता को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।
सामाजिक एकता, प्रेम और एकता का प्रतीक, भारतीय परंपराओं की समृद्ध परंपरा में होली का अत्यधिक सांस्कृतिक महत्व है। यह व्यक्तियों के लिए अपने जीवन में नए रंग जोड़ने और भाईचारे और सौहार्द के बंधन को मजबूत करने का एक अवसर के रूप में कार्य करता है।
होली मनाने के पीछे की कथाएं
प्रह्लाद,हिरण्यकश्यपु और होलिका से जुडी कथा :- विष्णु पुराण की एक कथा के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए बड़ी कठोर तपस्या की। हिरण्यकश्यप की वर्षों से कठिन तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने हिरण्यकश्यप को दर्शन दिए और कहा वत्स में तुम्हारी तपस्या से बहुत प्रसन्न हुआ माँगो तुम्हें क्या वरदान चाहिए, तब हिरण्यकश्यप ने परमपिता ब्रह्मा जी से वरदान माँगा की हे-भगवन में अमर होना चाहता हूँ ब्रह्मा जी ये सुन कर चौंक गए।
ब्रह्मा जी उसके मन के अंदर की दुष्टता को समझ गए और उन्होंने कहा वत्स मैंने ये सृष्टि भले बनाई है, लेकिन इसकी कुछ मर्यादाएं हैं, किसी को भी में अमर होने का वरदान नहीं दे सकता, ये मेरी सीमाओं से परे हैं। इसके अलावा तुम जो भी वरदान मांगोगे मैं अवश्य दूँगा, हिरण्यकश्यप ने फिर चालाकी चली और ब्रह्मा जी से वर माँगा की ना मैं बाहर मरू और ना ही अंदर ,ना रात में मरू और ना दिन में , ना मनुष्य मार सके ना ही पशु, ना अस्त्र से मरू ना शस्त्र से, और ना धरती पे मरू ना ही आकाश में। हिरण्यकश्यप की चालाकी देख कर ब्रह्मा जी मन ही मन मुस्कुराएं और कहा तथास्तु।
वरदान पाने के बाद हिरण्यकश्यप घंमंडी हो गया और अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा लोगो पर अत्याचार करने लगा। उसके अत्याचारों के डर से लोग उसकी पूजा करने लगे, लेकिन उसका खुद का बेटा प्रह्लाद अपने पिता के अपेक्षा भगवन विष्णु जी की पूजा करने लगा। प्रह्लाद ने हिरण्यकश्यप से कहा की मेरे लिए तो पूज्य केवल भगवन विष्णु जी है, मैं उनकी ही भक्ति करता हूँ। आप भी अपना जीवन ठीक करने के लिए उनकी ही पूजा करो वह बहुत दयालु है। यह बातें सुन कर हिरण्यकश्यप भड़क गया और वह भक्त प्रह्लाद को तरह-तरह की यातनायें देने लगा, लेकिन भक्त प्रह्लाद हर बार बच जाते थे।
हिरण्यकश्यप की बहन थी होलिका जिसे वरदान मैं एक चादर मिली थी जिसे औढ़ कर उसको अग्नि का कोई प्रभाव नहीं होता था, तो होलिका ने हिरण्यकश्यप से कहा की मैं प्रह्लाद को साथ लेकर अग्नि मैं बैठ जाती हूँ, चादर ले कर मैं बच जाउंगी और प्रह्लाद मर जायेगा। होलिका प्रह्लाद को लेकर अग्नि कुंड मैं बैठी लेकिन श्री हरी की कृपा से वह चादर होलिका के ऊपर से प्रह्लाद के ऊपर आ गिरी और होलिका जल के भस्म हो गई प्रह्लाद बच गए और तभी से होलिका दहन और होलिकोत्सव मनाया जाने लगा।
शिव जी और कामदेव से जुड़ी कथा :- होली की एक और पौराणिक कथा भगवन शिव और कामदेव से जुडी हुई है : माता सती की मृत्यु के बाद भगवान शिव पीड़ा में थे. शिव जी गहरे क्षोभ में थे जिससे पूरा संसार प्रभावित होने लगा। इसी पश्चात माता सती ने माँ पार्वती के रूप में जन्म लिया। माता पार्वती को हिमालय पुत्री के रूप में जाना जाता है। माँ पार्वती शिव जी से विवाह करना चाहती थी, वह भगवान शिव जी के मन में प्रेम भाव उत्पन्न करने का प्रयास करने लगीं।
लेकिन उस समय भगवन शिव खुद गहरी तपस्या में लीन थे, और उन्होंने माता पार्वती के प्रयास पर ध्यान नहीं दिया तब माता पार्वती ने कामदेव से सहायता मांगी (कामदेव प्रेम और काम के देवता है )। कामदेव ने परिणाम जानते हुए भी भगवान शिव के ह्रदय में प्रेम का बाण चला दिया जिससे भगवान शिव जी का ध्यान भंग हो गया। ध्यान भंग होने से शिव जी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी जिससे कामदेव भस्म हो गए।
परंतु, प्रेम के बाण ने अपना काम कर दिया था शिवजी की तपस्या भंग हो चुकी थी तब देवताओं ने उन्हें माता पार्वती जी के साथ विवाह करने के लिए मना लिया और एकबार फिर भगवान शिव संसार के कार्यों पर ध्यान देने लगे। कामदेव के भस्म होने पर उनकी पत्नी रति रोने लगीं और भगवन शिव जी से कामदेव को जीवित करने की गुहार लगाई, शिव जी का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने रति को अपने पति के पुनर्जीवन का वरदान दिया।
कामदेव के इस तरह भस्म होने से ही होलिका दहन की शुरूआत मानी जाती है और माता पार्वती और भगवन शिव जी के विवाह की खुशी में देवताओं ने इस दिन को उत्सव की रूप में मनाया, इस तरह होली मानाने की शुरूआत मानी जाती है।
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होली क्यों मनाई जाती है (Holi Kyo Manayi Jati Hai)?
Holi Kyo Manayi Jati Hai:- होली एक प्राचीन हिंदू त्यौहार है जो सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। भारत में होली का सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक रूप से बहुत महत्व है। होली क्यों मनाई जाती है(Holi Kyo Manayi Jati Hai)इसके कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं:
- होली वसंत के आगमन का प्रतीक है, जो रंगों का मौसम है। यह त्यौहार प्रकृति के नवीनीकरण और सर्दियों की समाप्ति का उत्सव है।
- होली मनाने की विभिन्न पौराणिक कहानियों हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध होलिका और प्रह्लाद की कहानी है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
- होली एक हर्ष, उल्लास और एकता का त्यौहार है। यह सम्पूर्ण समाज में एकता की भावना को बढ़ावा देता है।
- होली रंगों और खुशियों से भरा त्यौहार है। आपस में एक दूसरे पर रंग लगाना,पानी से भरे गुब्बारे फेंकना, एक दूसरे के प्रति नफरत को मिठाना और दुःख पर खुशी की जीत का प्रतीक है।
- होली हंसी, संगीत और नृत्य से भरा एक खुशी का अवसर है। होली लोगों को आज़ाद होने, अपनी चिंताओं को भूलने और आनंद की भावना का एहसास करता है और सकारात्मकता की भावना को बढ़ावा देता है। गिले खिक्वे
- होली लोगों को तनावपूर्ण रिश्तों को आपस में सुधारने और पहले के गिले शिकवे को माफ करने का अवसर प्रदान करती है। यह त्यौहार सामाजिक बंधनों को मजबूत करना और आपस में मेल-मिलाप की भावना को प्रोत्साहित करता है।
- होली भारत के सांस्कृतिक ताने-बाने में बहुत गहराई से रची-बसी है। विभिन्न क्षेत्रों में त्यौहार से जुड़े अनूठे रीति-रिवाज और परंपराएं हैं, जो उत्सव में विविधता और समृद्धि लाते हैं।
होली एक बहुआयामी त्योहार है जो एक दूसरे पर रंग लगाने से परे है। भारत में होली गहरी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है, एकता, खुशी और जीवन के सभी जीवंत रंगों में उत्सव को बढ़ावा देती है।
होली में क्या करें और क्या ना करें।
होली एक रंगों से भरा हुआ त्यौहार है जिसे उत्साह और खुशी के साथ मनाया जाता है। सभी को होली सुरक्षित और ध्यानपूर्वक मानना चाहिए। यहाँ हम आप को बता रहे हैं की होली में क्या करें और क्या न करें :
- होली खेलने के लिए प्राकृतिक और पर्यावरण-अनुकूल रंगों का प्रयोग करें। केमिकल युक्त रंग त्वचा और पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं।
- होली खेलने से पहले अपनी त्वचा पर तेल या मॉइस्चराइजर लगाएं और बालों में तेल लगाएं। इससे रंग को निकलना आसान हो जाता है।
- ऐसे कपड़े पहने जिन पर दाग लगने से आपको कोई परेशानी न हो, क्योंकि होली के रंगों को कपड़ों से निकलना मुश्किल होता है।
- हर कोई होली खेलने में सहज नहीं होता है। दूसरों की पसंद का सम्मान करें यदि वे खेलना नहीं चाहते तो उन्हें होली खेलने के लिए जबरदस्ती ना करें ।
- होली खेलने के लिए सुरक्षित जगह चुनें। दुर्घटनाओं से बचने के लिए व्यस्त सड़कों या भीड़-भाड़ वाली जगहों से बचें।
- होली एक सामाजिक त्यौहार है इसे परिवार और दोस्तों के साथ मनाएं । होली एक आनंदमय और एकजुटता का त्यौहार है।
- ऐसे रंगों का उपयोग करने से बचें जिनमें हानिकारक रसायन होते हैं, क्योंकि वे त्वचा में जलन और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकते हैं।
- होली खेलते समय लोगों पर जबरदस्ती रंग डालने से बचें जो लोग होली उत्सव में शामिल नहीं होना चाहते। उनके निर्णय का सम्मान करें।
- कुछ लोगों को रंगों से एलर्जी होती है। ध्यान रखें और रंग लगाने से पहले व्यक्ति को किसी भी एलर्जी के बारे में पूछें।
इन कुछ बातों का ध्यान रख कर आप अपने करीबियों और दोस्तों के साथ एक सुरक्षित और आनंददायक होली उत्सव मना सकते हैं।
Holi Kyo Manayi Jati Hai
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