धारी देवी मंदिर(Dhari Devi Mandir) उत्तराखंड राज्य में पौड़ी गढ़वाल जिले के श्रीनगर के पास स्थित है। धारी देवी जोकि “देवी काली” का एक स्वरुप है। धारी देवी को समर्पित यह प्राचीन मंदिर अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है और भक्तों और पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय तीर्थ स्थल है। अलकनंदा नदी के तट पर स्थित माँ धारी देवी को उत्तराखंड की संरक्षक और चार धामों (यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ) की रक्षक कहा जाता है।
माँ धारी देवी इस क्षेत्र को प्राकृतिक आपदाओं से बचती है। इस मंदिर में माँ धारी देवी का ऊपरी भाग यानी सिर्फ सिर ही स्थित है बाकि का निचला भाग यानी धड़ कालीमठ में स्थापित है। यह मंदिर श्रीनगर डैम के बीच में स्थित है। इस स्थान पर धारी देवी का जो पुराना मंदिर था उसे डैम बनाने के लिए तोड़ दिया गया और उसकी जगह इसी स्थान पर नया मंदिर बनाया गया जो पिल्लरों की सहायत से पानी से ऊपर उठा के बनाया गया है।
यह नया मंदिर पहाड़ी शैली में बनाया गया है जो बहुत ही सुन्दर है। कहा जाता है की इस मंदिर में माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। सुबह माता एक कन्या के रूप में दिखाई देती है, तो दोपहर को युवती के रूप में और शाम को एक वृद्ध महिला के रूप में नजर आती है।
माँ धारी देवी(Dhari Devi Mandir) से जुडी पौराणिक कथाएँ
माँ धारी देवी सात भाइयों की एक लोती बहन थी। धारी देवी अपने सभी भाइयों से बहुत प्रेम करती थी और हर प्रकार से उनकी सेवा करती थी। एक दिन उनके भाइयों को पता चला की माँ धारी देवी के उनके ग्रह भाइयों के लिए दोषपूर्ण है तो सभी भाई माँ धारी से बहुत ज्यादा घृणा करने लग गए। धारी देवी बचपन से ही अपने सातों भाइयों से स्नेह करती थी। धीरे-धीरे समय के साथ इन भाइयों की माँ दरी देवी के प्रति घृणा और बढ़ती गई । परन्तु एक दिन माँ धारी देवी के पांच भाइयों की आकस्मिक मृत्यु हो गई और दो विवाहित भाई ही बच गए।
यह दो भाई परेशान हो गए और सोचने लग गए की कहीं हमारे पांच भाइयों की मृत्यु हमारी बहन के कारण तो नहीं हुई, क्यूंकि उन्हें यह पता था की हमारी बहन के ग्रह हमारे लिए सुबह नहीं है और उन्हें यह डर सताने लग गया की कहीं उन पांच भाइयों की तरह हमारी भी मृत्यु न हो जाए। इस डर से वह माँ धारी देवी को मरने की सोचने लग गए। उस समय माँ धारी देवी सिर्फ 13 साल की थी उनके भाइयों ने उनका सिर धड़ से अलग कर दिया और मारने के पश्चात उनका मृत शरीर नदी में बहा दिया। उनका सिर नदी में बहते बहते कलियासौड़ के धारी नामक गांव में पहुंचा ।
वहां नदी किनारे एक व्यक्ति कपडे धो रहा था, उसने देखा नदी में एक कन्या बहते हुए आ रही है तो उसने उसे बचाने की सोची लेकिन नदी का प्रवाह इतना तेज़ था की वह डर गया कहीं में इस प्रवाह में बह ना जाऊं। इस डर से उसने कन्या को बचाने का निर्णय नहीं किया लेकिन तभी उस कटे हुए सिर से एक आवाज़ आई की तुम डरो मत मुझे यहाँ से बचाओ, तुम जहाँ-जहाँ अपने कदम रखोगे में वहां-वहां तुम्हारे लिए सीढ़ी बना दूंगी ।
यह सुन कर उस व्यक्ति का साहस बड़ा और वह उस कन्या को बचाने के लिए नदी की और आगे बड़ा, जैसे-जैसे वह नदी में आगे बढ़ता गया सच में सीढ़ियां बनती गई और वह व्यक्ति कन्या के पास पहुंचा और उस कटे हुए सिर को उठाया तो वह उसे देख कर डर गया जिसे वह एक कन्या समझ रहा था वह तो एक कटा हुवा सिर था। फिर उस कटे हुए सिर से एक आवाज़ आई की तुम घबराओ मत में एक देव रूप में हूँ तुम मुझे एक पवित्र स्थान किसी सुन्दर पत्थर पर स्थापित कर दो। उस व्यक्ति ने काटे हुए सिर की कही बात मानी और उसे एक पवित्र और स्वच्छ पत्थर में स्थापित कर दिया।
पत्थर पर स्थापित होने के बाद उस कटे हुए सिर ने उस व्यक्ति को अपने साथ हुए सम्पूर्ण घटना के बारे में बताया की उनके भाइयों ने उनके साथ क्या-क्या किया। कटे हुए सिर को पत्थर पर स्थापित करने के पश्चात वह सिर एक पत्थर में बदल गया और लोग उस जगह पर पूजा करने लगे फिर उस जगह पर माँ धारी देवी का एक सुन्दर मंदिर बनाया गया। और जो कन्या का शरीर का निचला भाग यानी धड़ था उसकी पूजा रुद्रप्राग के कालीमठ में होने लगी। कालीमठ मंदिर भारत के 108 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में माँ काली की पूजा होती है।
धारी देवी मंदिर(Dhari Devi Mandir) से जुडी दूसरी कथा
उत्तराखंड में आए 1882 में विनाशकारी बाढ़ के दौरान धारी देवी की मूल मूर्ति दो हिस्सों में टूट गई थी एक सिर और दूसरा धड़ जो टूट के पानी में बह गये थी। बहते-बहते टूटी हुई मूर्ति का एक हिस्सा यानी सिर धारो गांव के पास पहुंचा। गांव वालो को उस मूर्ति से एक आवाज़ सुनाई दी और जब गांव वाले उस मूर्ति का सामने गए तो उस मूर्ति ने गांव वालो को उस जगह पर एक मंदिर बनाने के लिए बोला, इसके बाद गांव वालों ने मिलकर वहां माँ धारी देवी का मंदिर बनाया।
और मूर्ति का दूसरा हिस्सा यानी धड़ कालीमठ में पहुंचा यहाँ भी माता का मंदिर बनाया गया। कालीमठ मंदिर में माता की माँ काली के रूप में पूजा होती ही। ऐसा भी कहा जाता है कि देवी ने एक बड़ी चट्टान के रूप में खुद को दो हिस्सों में विभाजित करके ग्रामीणों को बाढ़ से बचाया था।
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केदारनाथ आपदा से माँ धारी देवी(Dhari Devi Mandir) का कनेक्शन
2013 को केदारनाथ में आयी विनाशकारी आपदा को स्थानीय लोग धारी देवी मंदिर (Dhari Devi Mandir)से भी जोड़ते है। धारी देवी के पास अलकनंदा हाइड्रो इलेक्ट्रिक बाँध बनाया गया है। बाँध बनाने के लिए पुराना मंदिर तोड़ दिया गया और मूर्ति वहां से हटा दी गई। मूल मंदिर से मूर्ति हटाने के कुछ ही घंटो बाद केदारनाथ में भयंकर बाढ़ आ गई जिसमें जान माल की बहुत हानि हुई। स्थानीय लोग इसे माता को उनके मूल स्थान से हटाने पर उनका गुस्सा मानते है। इसके बाद बाँध बनाने वालो कंपनी ने उसी स्थान पर पानी से ऊपर पिल्लरों पर नए मंदिर का निर्माण करवाया।
धारी देवी मंदिर(Dhari Devi Mandir)कैसे पहुंचे ?
धारी देवी मंदिर(Dhari Devi Mandir)श्रीनगर रुद्रप्रयाग के बीच नेशनल हाईवे 58 पर स्थित है। यहाँ साल के किसी भी समय जाया जा सकता है। यहाँ से निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जोकि धारी देवी से 119 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से आप टैक्सी व सरकारी या प्राइवेट बस लेके यहाँ पहुँच सकते है। ऋषिकेश से श्रीनगर के लिए बस नियमित रूप से चलती रहती है।
धारी देवी मंदिर(Dhari Devi Mandir)से निकटतम हवाई अड्डा देहरादून में स्थित जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है, जो धारी देवी मंदिर से 134 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जॉली ग्रांट हवाई अड्डे से भी आप टैक्सी या बस के माध्यम से धारी देवी मंदिर पहुँच सकते है। माता का मंदिर साल के बारह महीने खुला रहता है।
कौन हैं धारी देवी?
धारी देवी माँ काली का स्वरूप हैं। माँ धरी देवी को उत्तराखंड और चार धाम (यमनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ) यात्रा की संरक्षक देवी माना जाता है।
धारी देवी कहाँ स्थित है?
धारी देवी मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले में श्रीनगर के पास अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है।
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